सुरिन्दर सिंह तेज ने कर्नल सरां की फ़ौज के शौर्य पर पंजाबी में लिखी दो पुस्तकों पर किया विचार-विमर्श
चंडीगढ़, 13 दिसम्बर:
देश की आज़ादी से पहले चले लम्बे संघर्ष से लेकर आज़ाद देश में देश की सुरक्षा के लिए भारतीय रक्षा सेवाओं द्वारा दी गये बलिदानों में पंजाबियों का योगदान बहुत बड़ा रहा है। हर पंजाबी को भारतीय सेना के गौरवमई इतिहास से अवगत करवाने के लिए मातृभाषा में फ़ौजी साहित्य लिखना समय की बड़ी ज़रूरत है।
यह बात कर्नल बी.एस.सरां ने शुक्रवार को पंजाब सरकार की तरफ से करवाए जा रहे तीसरे मिलिट्री लिटरेचर फेस्टिवल -2019 के पहले दिन पुस्तक चर्चा सैशन के दौरान कही। इस सैशन के दौरान कर्नल सरां द्वारा फ़ौज के शौर्य पर पंजाबी में लिखी दो पुस्तकें ‘भारतीय फ़ौज की चुनिन्दा लड़ाईयां’ और ‘पहला भारत -पाकिस्तान युद्ध ; 1947 -48 ऑपरेशन रैसक्यू (जम्मू कश्मीर) संबंधी प्रसिद्ध पत्रकार और पंजाबी ट्रिब्यून के पूर्व संपादक सुरिन्दर सिंह तेज ने चर्चा की। कर्नल सरां संबंधी जान-पहचान में बताया गया कि उन्होंने तीन जंगों 1965, 1971 और सियाचिन की पहली मुहिम में हिस्सा लिया जिस कारण उनके पास फ़ौज की लड़ाई संबंधी लिखने का निजी तजुर्बा भी था।
स. तेज ने शुरुआती शब्द बोलते हुये कहा कि फ़ौज संबंधी पंजाबी में बहुत कम साहित्य लिखा गया है। उन्होंने कहा कि मिलिट्री लिटरेचर फेस्टिवल में पंजाबी में लिखे फ़ौजी साहित्य को चर्चा में शामिल करना श्लाघायोग्य प्रयास है जिससे आने वाले समय में अन्य लेखकों को फ़ौज संबंधी पंजाबी में लिखने की प्रेरणा मिलेगी। स. तेज ने कुछ संदर्भ देते हुये बताया कि इससे पहले ब्रिगेडियर नरिन्दर पाल सिंह द्वारा तीन नावलों की कड़ी लिखी। कर्नल जसबीर भुल्लर ने चाहे उच्च कोटी का साहित्य लिखा परन्तु सेना संबंधी कम लिखा। मोहन काहलों द्वारा दूसरी विश्व जंग संबंधी ‘वहि गए पानी’ लिखा गया जोकि प्रेम कहानी अधिक थी। अजमेर मान ने फ़ौजी कहानियाँ लिखीं। प्रो. रणजीत सिंह दिल्ली ने भी कहानियाँ लिखीं। उन्होंने कर्नल सरां के इस उद्यम की सराहना की जो पंजाबी पाठकों के लिए सौगात है।
कर्नल सरां ने कहा कि उनके मन में इस बात की चीस थी कि स्थानीय भाषाओं में फ़ौजी साहित्य की कमी है जिसके लिए उन्होंने पंजाबी में लिखने को प्राथमिकता दी। उन्होंने कहा कि दिल के जज़्बात मातृभाषा में ही बयान किये जा सकते हैं। उन्होंने कहा कि साहित्य वाला उनका विद्यार्थी जीवन से ही झुकाव था और सैनिक जीवन के दौरान उन्होंने साहित्य पढऩा नहीं छोड़ा।