पंजाब के लोगों ने चौहर खान के बारे में जरूर सुना है जिनकी उम्र 80 साल है। वह अपने महान संगीत बोध के लिए जाने जाते हैं और उन्हें अलघोजा, (एक लकड़ी से बने वाद्य यंत्र) को बजाते हुए देखा जा सकता है। वह संगरूर जिले के छोटियन गांव के निवासी हैं और बताते हैं कि पहले के समय में वे कई सांस्कृतिक कार्यक्रमों में प्रस्तुति देते थे और महीने में लगभग 10 से 15 हज़ार कमाते थे। अब वह अपनी पत्नी और दो पोते-पोतियों के साथ रहते है।
उनकी पोती का नाम सोनी बानो है जो 16 साल की हैं और उनके पोते राजू खान 14 वर्ष के हैं। उनके बड़े बेटे की सड़क दुर्घटना में मौत हो गई जबकि छोटा अलग रहता है। इस प्रकार, उनका एकमात्र आय स्रोत उनकीपेंशन है। उनकी पत्नी- शमो बानो 76 वर्ष की हैं और उन्हें पेंशन के रूप में केवल 1500 रुपये मिलते हैं। उनकी पोती ने दसवीं कक्षा में 90% अंक हासिल किए, लेकिन वित्तीय संसाधनों की कमी के कारण उसे पढ़ाई छोड़नीपड़ी ।उन्होंने संस्कृति मंत्रालय, नई दिल्ली में पेंशन के लिए आवेदन किया था । वह अपनी किशोरावस्था से ही अलघोजा बजा रहें थे और लोग अभी भी उनकी दुर्लभ प्रतिभा के लिए उन्हें महत्व देते हैं।
शमो बानो की अब कमजोर नज़र है जिसकी वजह से सोनी को घर की देखभाल करनी पड़ती है। वह एक उज्ज्वल छात्रा है और उसके शिक्षक सोचते हैं कि उसे स्कूल से बाहर नहीं जाना चाहिए था।
उन्होंने कई शानदार शो में प्रदर्शन किया है लेकिन अब उनके पास महामारी के दौरान खुद को बनाए रखने का कोई रास्ता नहीं है। उन्होंने संस्कृति मंत्रालय से अनुरोध किया कि उनके जैसे कलाकारों के लिए किसी प्रकार की योजना हो ताकि वे अपने बुढ़ापे में खुद की देखबाल कर सकें। उन्हें उम्मीद है कि जल्द से जल्द उनकी पेंशन को मंजूरी मिल जाएगी ताकि उनकी पोती सोनी और पोते राजू आगे स्कूल जाना जारी रख सकें।