संसद में शून्यकाल के दौरान यू.टी कर्मचारियों पर केंद्रीय सिविल सेवा नियमों के विस्तार का विरोध किया
चंडीगढ़ 29 मार्च 2022
पूर्व केंद्रीय मंत्री सरदारनी हरसिमरत कौर बादल ने आज संसद से राजीव-लौंगोवाल समझौते की पुष्टि करने का आहवाहन किया ताकि चंडीगढ़ को जल्द से जल्द पंजाब में स्थानांतरित किया जा सके।
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बठिंडा सांसद ने संसद में शून्यकाल के दौरान चंडीगढ़ केंद्र शासित प्रदेश के कर्मचारियों पर सेंट्रल सिविल सर्विसिज रूल्ज का विस्तार करने कें कें्रद के कदम का विरोध किया। उन्होने इसे चंडीगढ़ पर पंजाब की हिस्सेदारी कम करने का एक और प्रयास करार दिया।
सरदारनी हरसिमरत कौर बादल ने कहा कि पंजाब पुनगर्ठन अधिनियम, 1966 के अनुसार जब अखंड पंजाब का विभाजन हुआ तो यह निर्णय लिया गया कि चंडीगढ़, पंजाब और हरियाणा की अस्थायी राजधानी होगी। ‘‘ यह भी निर्णय लिया गया कि केंद्र शासित प्रदेश में कर्मचारियों की पोस्टिंग में पंजाब और हरियाणा की 60ः40 की हिस्सेदारी होगी। चंडीगढ़ में भर्ती के लिए किसी अन्य कैडर से नौकरी का कोई प्रावधान नही था।
सरदारनी बादल ने कहा कि समय के साथ इस सिद्धांत को कमजोर कर दिया गया और अलग अलग कैडर बनाए गए और अन्य केंद्र शासित प्रदेशों के कर्मचारियों को भी सिविल और पुलिस सेवाओं में चंडीगढ़ में तैनात किया गया। ‘‘ केंद्रीय सेवा नियमों को लागू करना जो अन्य केंद्र शासित प्रदेशों की तर्ज पर चंडीगढ़ में लागू किए गए हैं, चंडीगढ़ पर पंजाब के दावे को कमजोर करने का एक और प्रयास है। यह राजीव-लौंगोंवाल समझौते के भी खिलाफ है, और इसका उददेश्य राज्य से पंजाब की राजधानी छीनना है’’।
यह कहते हुए राजीव-लौंगोवाल समझौते में 1986 में चंडीगढ़ को पंजाब में तबादला करने का प्रावधान है, सरदारनी बादल ने कहा कि ऐसा नही करना संघवाद के सिद्धांत का उल्लंघन है, क्योंकि चंडीगढ़ को पंजाब को सौंपा जाना पंजाब और पंजाबियों के लिए एक भावनात्मक मुददा है। उन्होने संसद को पंजाब और उसके लोगों के अधिकारों की रक्षा के लिए समझौते की पुष्टि करने का आग्रह किया। उन्होने कहा , ‘‘ चंडीगढ़ हमारी राजधानी है और इसे पंजाब में तबदील किया जाना चाहिए’’।
बठिंडा की सांसद ने कहा कि चंडीगढ़ के कर्मचारियों के लिए केंद्र सेवा नियमों का विस्तार करने का केंद्र का हालियानिर्णय केंद्र शासित प्रदेश में पंजाबी भाषा के लिए तबाही साबित होगा। उन्होने कहा कि केंद्र शासित प्रदेश में पंजाब की स्थिति कुछ सालों में कमजोर की गई है, और अब यह चंडीगढ़ में प्रचलित केंद्रीय नियमों के साथ इसकी स्थिति बेमानी हो जाएगी।
उन्होने यह भी बताया कि कुछ समय पहले केंद्र सरकार ने भाखड़ा ब्यास प्रबंधन बोर्ड (बीबीएमबी) में पंजाब की हिस्सेदारी कम कर दी थी। उन्होने कहा कि बोर्ड के प्रबंधन को बांध सुरक्षा के बहाने केंद्र के अधीन लाया गया है। उन्होने कहा कि बोर्ड के सदस्य तथा पंजाब सरकार के के जो प्रतिनिधि उंचे ओहदों पर थे, को 56 सालों से जारी व्यवस्था से हटा दिया गया।