मेहर चंद महाजन डीएवी कॉलेज फॉर विमेन, चंडीगढ़ में अर्थशास्त्र के स्नातकोत्तर विभाग ने ‘डिजिटल आईडेंटिटी : कैटलिस्ट फ़ॉर डिजिटल इकॉनमी’ विषय पर एक राष्ट्रीय संगोष्ठी का आयोजन किया। भारतीय विशिष्ट पहचान प्राधिकरण (यूआईडीएआई) के उप महानिदेशक, श्री सुमनेश जोशी, कार्यक्रम में बतौर मुख्य वक्ता शामिल हुए जबकि एआईसीटीई, नई दिल्ली से केंद्र शासित प्रदेश, जम्मू-कश्मीर और लद्दाख के सलाहकार प्रो अजीत अंगराल इस अवसर पर विशेष अतिथि थे। उद्घाटन सत्र में, प्रिंसिपल डॉ निशा भार्गव ने डिजिटल पहचान जैसे अत्यधिक प्रासंगिक विषय पर प्रतिभागियों के ज्ञानवर्धन के लिए अर्थशास्त्र विभाग की इस पहल की सराहना की और कहा कि यह न केवल नागरिक और सामाजिक सशक्तिकरण को सक्षम बनाता है बल्कि वास्तविक और समावेशी आर्थिक लाभ भी संभव बनाता है। शिक्षा, स्वास्थ्य, बैंकिंग सेवाओं आदि तक पहुँच में चुनौतियों सहित विभिन्न कारकों के कारण ग्रामीण और शहरी क्षेत्रों के विकास में असमानता की ओर ध्यान आकर्षित करते हुए, डॉ. भार्गव ने कहा कि डिजिटल पहचान सेवाओं और संसाधनों तक लोकतांत्रिक पहुंच सुनिश्चित करती है।
कागज पर पहचान के पारंपरिक रूप से आधार के रूप में डिजिटल पहचान में परिवर्तन की व्याख्या करते हुए, श्री जोशी ने आधार जारी करने की प्रक्रिया के बारे में विस्तार से बताया। श्री जोशी ने इस बात पर जोर दिया कि कैसे डिजिटल पहचान और डिजिटल वित्तीय लेनदेन का अभिसरण भारत को 5 ट्रिलियन डॉलर की अर्थव्यवस्था बनने के अपने लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए प्रेरित कर सकता है। उन्होंने यह भी चर्चा की कि कैसे डिजिटल पहचान ने यूपीआई आधारित भुगतान प्रणाली, ई-केवाईसी और लाभार्थियों को प्रत्यक्ष लाभ हस्तांतरण प्रदान करने जैसे कई सुविधाएँ वित्तीय क्षेत्र में प्रदान की हैं। स्पीकर ने छात्रों को बताया कि डिजिटल पहचान केवल आर्थिक और वित्तीय पहलुओं तक ही सीमित नहीं है बल्कि प्रवासी श्रमिकों, लापता बच्चों की पहचान आदि जैसे सामाजिक पहलुओं तक भी इसकी पहुँच है। इस ज्ञानवर्धक सत्र में 250 प्रतिभागियों की उपस्थिति दर्ज की गई।
कागज पर पहचान के पारंपरिक रूप से आधार के रूप में डिजिटल पहचान में परिवर्तन की व्याख्या करते हुए, श्री जोशी ने आधार जारी करने की प्रक्रिया के बारे में विस्तार से बताया। श्री जोशी ने इस बात पर जोर दिया कि कैसे डिजिटल पहचान और डिजिटल वित्तीय लेनदेन का अभिसरण भारत को 5 ट्रिलियन डॉलर की अर्थव्यवस्था बनने के अपने लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए प्रेरित कर सकता है। उन्होंने यह भी चर्चा की कि कैसे डिजिटल पहचान ने यूपीआई आधारित भुगतान प्रणाली, ई-केवाईसी और लाभार्थियों को प्रत्यक्ष लाभ हस्तांतरण प्रदान करने जैसे कई सुविधाएँ वित्तीय क्षेत्र में प्रदान की हैं। स्पीकर ने छात्रों को बताया कि डिजिटल पहचान केवल आर्थिक और वित्तीय पहलुओं तक ही सीमित नहीं है बल्कि प्रवासी श्रमिकों, लापता बच्चों की पहचान आदि जैसे सामाजिक पहलुओं तक भी इसकी पहुँच है। इस ज्ञानवर्धक सत्र में 250 प्रतिभागियों की उपस्थिति दर्ज की गई।