कुण्डलिनी शक्ति जागरण व शरद पूर्णिमा का संबंध

1. शरद पूर्णिमा के दिन चंद्रमा की ऊर्जा को ग्रहण करना बहुत अहम माना गया है। इसलिए शरद पूर्णिमा को सबसे बड़ी पूर्णिमा कहा जाता है। हमरे शास्त्रों के अनुसार कुछ रात्रियों की बहुत अहमियत है जैसे नवरात्री ,शिवरात्रि ,पूनम की रात्रि आदि हैं। शरद पूर्णिमा,जन्माष्टमीराधाष्टमी आदि पर्व के खास दिनों में कुण्डलिनी शक्ति जागरण औरध्यान व जप साधना पर मन लगाना चाहिए।

2. यह विधा अन्धकार से छुटकारा पाने का एकमात्र माध्यम है। आपकोइससे परिवार को, दूसरों को , समाज को और खुद को अच्छे तरीके सेसमझने में मदद मिलेगी । कुण्डलिनी शक्ति जागरण हर तरफ प्रेम वशांति फैलता है। ये हमें सिखाता है कि किस प्रकार हम अपने मन, , बुद्धि तथा शरीर की सभी कर्मेंद्रियों को विकसित कर सकते है ।
3. कुण्डलिनी शक्ति जितनी बढती है हमें उसके अनेक रंग उतने ही देखनेको मिलते है। कभी हम बहुत शांत होते हैं तो कभी हम बहुत संतुष्ट दिखाई देते हैं । कुण्डलिनी जागरण के अनेक रंग होते है क्यूंकि जीवन में कभी भी कुछ भी समान नहीं रहता। इसलिए इसे एकरस जागरण भी कहा गया है। जब हम कुण्डलिनी जागरण को अपनाने के लिए आगेआते है तो हमारे मार्ग में अन्य रुकावटें आती है। हमें इन सभी अड़चनोंका सामना करके निष्ठापूर्वक आगे बढ़ते रहना चाहिए।
4. यदि आप अपनी आंखों की रोशनी बढ़ाना चाहते है तो दशहरे से शरदपूर्णिमा तक हर रोज रात में 15 से 20 मिनट तक चांद को देखें। शरदपूर्णिमा की रात को यदि आप 10-15मिनट तक चंद्रमा की रोशनी मेंरहते है तो आपको बहुत फायदे मिलते है।

 

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