डर और दहशत के माहौल में जी रहा है बंगाल में अनुसूचित जाति वर्ग

दलित अत्याचार में बंगाल पुलिस दंगाइयों के साथ और प्रशासनिक अधिकारियों के आंख, कान बंद

चंडीगढ़, 14 मई ( ): बंगाल में अनुसूचित जाति के लोगों में डर और दहशत का माहौल है, उन पर होते अत्याचार में पुलिस दंगाइयों के साथ खड़ी है, जिला प्रशासन आंखें मूंदे बैठा है, यह यह कहना है राष्ट्रीय अनुसूचित जाति आयोग के चेयरमैन विजय सांपला का, जोकि अपने 2 दिन के बंगाल के दौरे के बाद पत्रकारों से बातचीत कर रहे थे।
सांपला ने कहा कि 1947 की जो दर्दनाक भयावह आपबीती बुजुर्गों से हम सुनते थे, तस्वीरें देखते थे उसका प्रत्यक्ष एहसास मुझे गाँव मिल्कीपाड़ा में दौरे के समय हुआ जहां एक ही लाइन में 12 दुकाने तोड़ी गई, लूटी गई।

बंगाल पुलिस दंगाइयों के साथ खड़ी है और यही कारण है कि जिला बर्धमन के गांव नबाग्राम और जिला दक्षिण 24 परगना के गाँव नबासन में पीडि़त दलित परिवार घर छोडक़र भाग गए और दंगाई सरेआम घूम रहे हैं।
गांव छोड़ो वर्धमान शहर के अंदर घरों पर आक्रमण कर घर जलाए गए, तोड़े गए, लुटे गए, डर के मारे पूरे के पूरे मोहल्ले खाली हो गए हैं, बंगाल पुलिस आंखें कान बंद करी बैठी है।
सांपला ने आगे कहा कि अनुसूचित जाति अत्याचार निवारण अधिनियम की धाराओं के तहत पुलिस कार्रवाई नहीं कर रही क्योंकि इसके तहत शिकायत आने पर, पहले एफआईआर करनी होती है, फिर सीधा आरोपियों को गिरफ्तार करना होता है और बाद में इन्वेस्टिगेशन होती है।

इतना ही नहीं अनुसूचित जाति अत्याचार निवारण अधिनियम की धाराओं के तहत प्रशासनिक अधिकारी कार्रवाई नहीं कर रहे क्यूंकि अब तक पीडि़त दलित परिवारों को कंपनसेशन नहीं मिला है।
मुआवजा छोड़ो पीडि़तों की तो जिला प्रशासन द्वारा ना तो सूची बनाई गई है, ना उनके नुकसान का अंदाजा लगाया गया है और ना ही उन्हें अब तक कोई मुआवजा दिया गया है।

जब तक उनका पुनर्वास नहीं हो जाता तब तक प्रशासन को उनको तीनों समय का भोजन के लिए राशन और सिर रहने के लिए जगह देनी होती है, वह भी बंगाल प्रशासन अब तक नहीं कर पाया।

सांपला ने बंगाल सरकार को कहा कि तुरंत अनुसूचित जाति अत्याचार निवारण अधिनियम की धाराओं के तहत कारवाई ना करने के दोषी पुलिस अधिकारियों को सस्पेंड किया जाए और उन पर कानूनी कार्रवाई शुरू की जाए।

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