एडवांस्ड फोम स्क्लेरोथेरेपी और लेजर से गंभीर वैरिकाज़ नसों के रोगियों का इलाज संभव: डा. रावुल जिंदल

ये प्रक्रिया कम दर्दनाक है और करीब 30 मिनट में ही पूरी हो जाती है; एक ही दिन में डिस्चार्ज हुए मरीज-

होशियारपुर, 18 जून, 2022: होशियारपुर निवासी 45 वर्षीय व्यक्ति दिनेश कुमार को एक चुनौतीपूर्ण समय का सामना करना पड़ रहा था क्योंकि वह पैर में दर्द, भारीपन और सूजन के साथ-साथ बाएं पैर की वैरिकाज़ नसों (सूजन और टेढ़ी नसें) से पीडि़त थे। उनको अपनी इस समस्या के कारण ना सिर्फ पैरों में तीव्र ऐंठन का सामना करना पड़ रहा था बल्कि उनका चलना-फिरना भी मुश्किल हो कर रह गया था। वे काफी कम मूवमेंट कर पा रहे थे।
दर्द और परेशानी को सहन करने में असमर्थ, रोगी ने इस साल 9 मई को डॉ.रावुल जिंदल, डायरेक्टर, वस्कुर्लर सर्जरी, फोर्टिस हॉस्पिटल, मोहाली में से संपर्क किया।
एक डॉपलर अल्ट्रासाउंड स्कैन ने बाएं पैर में क्षतिगस्त हुए वाल्वस के बारे में बताया और वहां पर त्वचा का रंग भी काफी गहरा हो चुका था। इसे इस बीमारी के स्टेज सी2-सी3 के रूप में जाना जाता है, जो पैरों में तीव्र सूजन (एडिमा) की विशेषता है। उपचार में देरी से रोगी के पैर में काफी अधिक अल्सर हो सकते थे।
जिंदल के नेतृत्व में डॉक्टरों की टीम ने फोम स्क्लेरोथेरेपी और रोगग्रस्त नस का लेजर उपचार किया। फोम स्क्लेरोथेरेपी का उपयोग उभरी हुई वैरिकाज़ नसों और स्पाइडर नसों के इलाज के लिए किया जाता है। मेडिकल प्रोसीजर के उसी दिन रोगी को छुट्टी दे दी गई और वह बिना किसी सहारे के चलने में सक्षम था। वह पूरी तरह से ठीक हो गया है और आज सामान्य जीवन जी रहा है।
इस मामले पर चर्चा करते हुए, डॉ.जिंदल ने कहा कि ‘‘वैरिकाज़ नसें पैर के किसी भी हिस्से में हो सकती हैं, लेकिन ज्यादातर जांघों और काल्वस पर लगातार खड़े रहने और लंबे समय तक खड़े रहने के कारण पाई जाती हैं। रोग वेनस सिस्टम की खराबी का संकेत देता है और सही आकलन के लिए इसका मूल्यांकन एक वस्कुर्लर सर्जरी विशेषज्ञ द्वारा ही किया जाना चाहिए।’’
यह कहते हुए कि नवीनतम तकनीकी प्रगति के माध्यम से वैरिकाज़ का सफलतापूर्वक इलाज किया जा सकता है, डॉ.जिंदल ने कहा कि ‘‘वैरिकाज़ नसों के लिए एडवांस्ड उपचार विकल्पों की एक विस्तृत सीरीज उपलब्ध है। प्रक्रिया कम दर्दनाक है और इसमें लगभग 30 मिनट लगते हैं। एक मरीज जल्दी ठीक हो जाता है और मरीज प्रक्रिया के एक घंटे के भीतर अपने घर जा सकता है। इसके अलावा, मरीज को काफी कम दवाएं लेनी पड़ती है और उसके बाद काफी कम देखभाल की जरूरत रह जाती है।’’

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