कृषि विरोधी कानूनों पर संसद में बहस से भाग रही है मोदी सरकार-भगवंत मान

मान ने किसानों की आवाज बन संसद में लगातार आठवीं बार पेश किया ‘काम रोको प्रस्ताव’
नई दिल्ली/चंडीगढ़, 29 जुलाई 2021
आम आदमी पार्टी (आप) पंजाब के अध्यक्ष और सांसद भगवंत मान ने आरोप लगाया कि मोदी सरकार देश के सबसे महत्वपूर्ण मुद्दे ‘काले तीन कृषि कानूनों’ के बारे में संसद में बहस करवाने से भाग रही है, जिससे देश और दुनिया के सामने मोदी सरकार का असली चेहरा सार्वजनिक न हो। इसी लिए ‘आप’ द्वारा संसद में कृषि कानूनों पर बहस करने के लिए पेश किए जाते ‘काम रोको प्रस्ताव’ को जानबूझ कर अस्वीकृत किया जाता है।
वीरवार को जारी बयान में मान ने कहा कि संसद में विचार चर्चा होने पर देश के लोगों को तीन कृषि कानूनों में छिपे ‘इस सच’ का पता लग जायेगा कि किस तरह मोदी सरकार देश की जमीन और अनाज अपने आक़ा कारपोरेटरों के हवाले कर रही है।
भगवंत मान ने अन्नदाता की आवाज बन वीरवार को संसद में लगातार आठवीं बार ‘काम रोको प्रस्ताव’ पेश किया। इस समय मान ने कहा कि संसद के दोनों सदनों में ‘आप’ द्वारा कृषि बिलों के बारे में बहस करवाने की बात जोर शोर से उठाई जाती है, परन्तु मोदी सरकार कृषि कानूनों के बारे में न कुछ बोल रही है और न कुछ सुन रही। बल्कि संसद में हंगामे के दौरान अन्य बिल पास करके राज्यों और लोगों के हकों पर डाका मार रही है।
‘आप’ संसद ने कहा कि देश के किसानों की मांग के अनुसार नरेंद्र मोदी सरकार ने तीन कृषि कानून वापिस तो क्या लेने थे, उल्टा चौथा ‘बिजली संशोधन बिल 2021’ संसद में लाकर किसानों, मजदूरों और राज्यों पर ओर डाका मारने की तैयारी की जा रही है। उन्होंने कहा कि बिजली संशोधन बिल के पास होने से राज्यों को भिखारी बनाया जायेगा, क्योंकि पहले ही जी.एस.टी प्रणाली लागू करके मोदी सरकार ने राज्यों को केंद्र से पैसे मांगने वाले भिखारी बना दिया है। इस तरह भी बिजली संशोधन बिल के द्वारा राज्यों से बिजली छीन कर बाद में राज्यों को बिजली के लिए भिखारी बना दिया जायेगा।
मान ने कहा केंद्र की नरेंद्र मोदी सरकार जैसे राज्यों से जमीन और बिजली जबरन छीन रही है, उससे देश में फेडरल ढांचा ही खत्म हो जायेगा और सत्ता का केंद्रीकरण होने से तानाशाही ओर बढ़ेगी। उन्होंने कहा कि अमरीका जैसे देश में भी लोगों की आवाज सुनी और स्वीकार की जाती है, परन्तु विश्व के बड़े प्रजातांत्रिक देश की अंधी और गूंगी सरकार न तो सड़कों पर बैठे किसानों को देख रही है और न ही संसद में लोगों के चूने हुए प्रतिनिधियों की ओर से कृषि कानूनों के बारे में बहस करवाने की उठाई जाती आवाज सुन रही है।

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