रंगाई और मुद्रण से जुड़े उद्यम ‘करुंगन’ मैन्युफैक्चर एंड एक्सपोर्टर की सफलता की गाथा

दिल्ली, 15 JAN 2024

पश्चिम बंगाल के बीरभूम जिले के एक छोटे से गांव का एक अविवाहित युवक अपना उद्यम शुरू करने के लिए एक अच्छे मार्गदर्शक की तलाश कर रहा था। अपने सीमित कंप्यूटर ज्ञान के साथ, वह एक नाम ढूंढने में सफल रहे- महात्मा गांधी ग्रामीण औद्योगीकरण संस्थान और तुरंत उन्होंने अपने उद्यम के विकास के लिए महात्मा गांधी ग्रामीण औद्योगीकरण संस्थान से संपर्क किया। मोबाइल के माध्यम से महात्मा गांधी ग्रामीण औद्योगीकरण संस्थान से पर्याप्त जानकारी हासिल करने के बाद, वह स्वयं महात्मा गांधी ग्रामीण औद्योगीकरण संस्थान गए और खादी एवं वस्त्र प्रभाग की वैज्ञानिक टीम से मिले तथा अपने इलाके में अपना खुद का उद्यम शुरू करने की इच्छा के बारे में बताया। जब उससे पूछा गया तो पता चला कि वह स्नातक भी नहीं है, वह एक ऐसे परिवार से है जो पिछले 20 वर्षों से रंगाई का काम कर रहा है। वह इसी क्षेत्र में और आगे बढ़ना चाहते थे और अपना खुद का उद्यम शुरू करना चाहते थे। उन्हें अपनी पहली यात्रा के दौरान महात्मा गांधी ग्रामीण औद्योगीकरण संस्थान में अपना उद्यम शुरू करने के लिए बुनियादी आवश्यकताओं और चरण-दर-चरण उद्यम के विकास के बारे में बताया गया। महात्मा गांधी ग्रामीण औद्योगीकरण संस्थान के मार्गदर्शन प्राप्त करते हुए, वह 09 जून 2016 से 29 जून 2016 तक प्राकृतिक रंगों के साथ खादी की रंगाई पर कौशल विकास प्रशिक्षण में शामिल हुए।

महात्मा गांधी ग्रामीण औद्योगीकरण संस्थान में अपना प्रशिक्षण पूरा होने के तुरंत बाद, उन्होंने अपने गांव यानी, बेनेपुकुर पारा, पोस्ट- सूरी, जिला- बीरभूम, पश्चिम बंगाल में अपना उद्यम शुरू करने की तैयारी शुरू कर दी। चूंकि वह अपना व्यवसाय छोटे स्तर पर शुरू करने की योजना बना रहे थे, इसके लिए आवश्यक धन की व्यवस्था उनके परिवार ने की। अगस्त, 2016 में “करुंगन” नाम से अपना उद्यम शुरू किया, जहां सूती और रेशमी कपड़े के मैटेरियल पर बाटिक, प्राकृतिक रंगाई, टाई एंड डाई, शिबोरी लहरिया का काम किया जाता है।

उन्होंने 5 लोगों को रोजगार दिया है और अपनी पारंपरिक रंगाई इकाई शुरू की है।

वर्तमान में प्रतिदिन 100 मीटर कपड़े पर रंगाई की जाती है या प्रिंटिंग की जाती है। रंगे हुए या प्रिंटेड मैटेरियल का विपणन स्थानीय बाजार में बिक्री आउटलेट के माध्यम से किया जा रहा है। वह अपने मैटेरियल के विपणन के लिए देश भर में स्थानीय, जिला, राज्य और राष्ट्रीय स्तर की सभी प्रदर्शनियों में भी भाग लेते हैं और उनकी मासिक आय लगभग 50,000 रुपये हैं।

वह महात्मा गांधी ग्रामीण औद्योगीकरण संस्थान के खादी और वस्त्र प्रभाग के साथ लगातार संपर्क में हैं और पारंपरिक रंगाई एवं छपाई तकनीकों, डिजाइन और विपणन रणनीति के बारे में तकनीकी मार्गदर्शन प्राप्त करते हैं। फिलहाल वह अपनी इकाई को निर्यात के लिए पंजीकृत कराने में सफल रहे हैं।

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