सरदार सुखबीर सिंह बादल ने राजनीतिक दलों से संयुक्त होकर तीनों खेती कानूनों को निरस्त करने की मांग करने की अपील की

एनडीए सरकार से कहा कि पहले काले कानूनों को निरस्त करें और फिर किसानों से विचार-विमर्श करें
चंडीगढ़/26जुलाई 2021 शिरोमणी अकाली दल के अध्यक्ष सरदार सुखबीर सिंह बादल ने आज सभी राजनीतिक दलों से तीनों खेती कानूनों को निरस्त करने की मांग करते हुए कहा कि इस एनडीए सरकार से कहा कि वह किसान आंदोलन से ध्यान भटकाने के लिए राहत देना चाहती है, ऐसा हरगिज नही होगा।
सरदारनी हरसिमरत कौर बादल , सरदार बलविंदर सिंह भूंदड़ तथा श्री नरेश गुजराल सहित शिअद-बसपा के सांसदों ने ‘काले कानून वापिस लो’ और ‘किसानों की मांगे पूरी करो’ के नारे लगाते हुए संसद के बाहर विरोध प्रदर्शन जारी रखा और तीनों काले कानूनों को निरस्त करने की मांग की।
पत्रकारों से बातचीत करते हुए शिरोमणी अकाली दल के अध्यक्ष ने कहा कि शिअद-बसपा गठबंधन में संसद सत्र के पहले दिन से ही इस मुददे को उठाया है। ‘ हम पंजाब और देश के किसानों के लिए न्याय सुनिश्चित करने के लिए प्रतिबद्ध हैं। हम अन्य राजनीतिक दलों से भी अपील करते हैं कि वे यह सुनिश्चित करने के लिए एकजुट हों कि अन्नदाता किसी भी तरह से कमजोर न हो’’।
अकाली दल अध्यक्ष ने केंद्र द्वारा किसानों को गलत ढ़ंग से पेश करने के लिए निंदा करते हुए कहा कि वह यह रंगत देने की कोशिश कर रहे हैं कि वे बातचीत के लिए तैयार हैं , लेकिन किसान बातचीत के लिए आगे नही आ रहे हैं। उन्होने कहा कि यह अजीब बात है कि केंद्र सरकार खेती कानूनों पर चर्चा क्यों चाहती है, जबकि देश के किसानों ने एकमुश्त खारिज कर दिया था’’। अगर सरकार वास्तव में किसानों की भलाई के बारे में चिंतित है तो उन्हे यह घोषणा करनी चाहिए कि तीनों खेती कानूनों को रदद किया जा रहा है। इसके बाद किसानों की आर्थिक स्थिति में सुधार के लिए आवश्यक कदमों पर किसानों के साथ विचार विमर्श किया जा सकता है। उन्होने कहा कि सरकार हालांकि ऐसा करने को तैयार नही थी ,क्योंकि उसका तीनों काले कानून रदद करने का कोई इरादा नही है।
सरदार बादल ने केंद्र सरकार की निंदा करते हुए कहा कि दिल्ली की सीमाओं पर किसानों के साथ होने वाली त्रासदी के बारे अनभिज्ञता जताकर किसानों की पीड़ा के प्रति घोर असंवेदनशीलता दिखाई है। उन्होने कहा कि किसान आंदोलन में 550 से अधिक किसानों की जानें गई हैं। ‘‘ किसान आंदोलन के शहीदों द्वारा किए गए बलिदान को पहचानने के बजाय सरकार यह कहते हुए उनके अस्तित्व पर सवाल उठा रही है कि उनके पास किसान आंदोलन में शहीद हुए किसानों की मौतों का कोई रिकाॅर्ड नही है। सिर्फ इतना ही नही राष्ट्रीय राजधानी में अपना विरोध दर्ज काने के लिए आने वाले किसानों को ‘मवाली’ बताया जा रहा है। भारत किसानों के उत्पीड़न को हरगिज बर्दाश्त नही करेगा। एनडीए सरकार को इस बात को समझना चाहिए कि वह सही कदम उठाए यां फिर पूरे समुदाय के क्रोध का सामना करने के लिए तैयार रहे ’’।

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