जे.सी.बोस विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय परिसर अप्रैल 2021 के बाद पूरी तरह से सौर ऊर्जा पर संचालित होगा

जे.सी.बोस विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय परिसर अप्रैल 2021 के बाद पूरी तरह से सौर ऊर्जा पर संचालित होगा

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जे.सी.बोस विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय परिसर अप्रैल 2021 के बाद पूरी तरह से सौर ऊर्जा पर संचालित होगा

चण्डीगढ़, 11 दिसम्बर – जे.सी.बोस विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय, वाईएमसीए, फरीदाबाद का परिसर जल्द ही सौर ऊर्जा पर चलेगा। विश्वविद्यालय ने ऊर्जा के पारंपरिक स्रोत से स्वच्छ ऊर्जा की ओर एक बड़ा कदम उठाते हुए आज अपने परिसर में ग्रिड कनेक्टेड रूफटॉप सौर ऊर्जा संयंत्र की स्थापना के लिए एक सोलर एनर्जी कंपनी के साथ समझौता किया है, जिसके अनुसार विश्वविद्यालय परिसर अप्रैल 2021 के बाद पूरी तरह से सौर ऊर्जा पर संचालित होगा।

इस संबंध में जानकारी देते हुए विश्वविद्यालय के प्रवक्ता ने बताया कि कुलपति प्रो. दिनेश कुमार की उपस्थिति में कुलसचिव डॉ. सुनील कुमार गर्ग द्वारा ज्योतिकिरण एनर्जी मुंबई प्राइवेट लिमिटेड जोकि सनसोर्स एनर्जी प्राइवेट लिमिटेड, नोएडा की एक विशेष प्रयोजन माध्यम संस्था है, के साथ समझौता किया गया है। समझौते के अंतर्गत कंपनी द्वारा हरियाणा सरकार के नवीन एवं नवीकरणीय ऊर्जा विभाग, हरियाणा अक्षय ऊर्जा विकास एजेंसी (हरेडा) के सहयोग से विश्वविद्यालय में 266 किलोवाट क्षमता के ग्रिड कनेक्टेड रूफटॉप एसपीवी पावर प्लांट लगाया जायेगा।

इस अवसर पर कुलपति प्रो. दिनेश कुमार ने कहा कि यह विश्वविद्यालय के लिए पूरी तरह से नि:शुल्क होगा क्योंकि इस सौर ऊर्जा संयंत्र की स्थापना, संचालन और रखरखाव की लागत कंपनी द्वारा वहन की जाएगी।
उन्होंने कहा कि कंपनी ने विश्वविद्यालय परिसर में मुख्य रूप से प्रशासनिक ब्लॉक, शैक्षणिक ब्लॉक और शकुंतलम सभागार जैसी प्रमुख इमारतों पर सौर पैनल स्थापित करने के लिए जगह की पहचान की है, जहां बिजली की आपूर्ति की सबसे अधिक आवश्यकता होती है।

उन्होंने कहा कि विश्वविद्यालय का उद्देश्य ग्रीन कैंपस पहल को बढ़ावा देना है। इसी के दृष्टिगत सौर ऊर्जा के माध्यम से बिजली की मांग को पूरा करने के लिए विश्वविद्यालय द्वारा कई भवनों की छतों पर खाली जगहों का उपयोग सौर ऊर्जा उत्पादन के लिए करने की इच्छा व्यक्त की गई थी और प्रस्ताव दिया गया था। उन्होंने कहा कि प्रस्तावित सोलर प्लांट से बिजली उत्पादन न केवल विश्वविद्यालय के बिजली बिलों को कम करेगा, बल्कि विश्वविद्यालय के ‘स्वच्छ ऊर्जा मिशन’ को भी पूरा करेगा और साथ ही कार्बन उत्सर्जन भी कम होगा।

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