स्मृति शेष – प्रोफेसर डॉ. एल.डी. जोशी

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लोक संस्कृति, साहित्य और परंपराओं के अन्वेषक शिखर पुरुष

– डॉ. दीपक आचार्य

9413306077

प्रो.(डॉ) एल.डी. जोशी आज हमारे बीच नहीं हैं लेकिन अब उनका समग्र प्रेरणादायी व्यक्तित्व और दशकों की कड़ी मेहनत से अर्जित ज्ञान और अनुभवों का बहुत बड़ा कोष हमारे पास है जिसे सहेज कर वागड़ की सेवा करते हुए हम वागड़ की लोक संस्कृति, साहित्य और परंपराओं के विलक्षण संसार से रूबरू करा सकते हैं। इस दिशा में अभी बहुत कुछ किए जाने की आवश्यकता है।

डॉ. लालशंकर डूंगरजी जोशी ने उच्च शिक्षा को अपनी आजीविका का जरिया ही नहीं माना बल्कि पुरातन विषयों पर निरन्तर खोज, अन्वेषण, गहन शोध एवं निष्कर्षों को उजागर किया और इसे अपने शोधार्थियों के माध्यम से समाज और क्षेत्र के समक्ष परोसा। अधिकतर समय कर्मस्थली गुजरात होने के बावजूद उन्होंने आरंभ से अन्त तक वागड़ की सेवा को सर्वोपरि धर्म मानकर रखा और वागड़ के लिए समर्पित होकर जीते हुए वागड़ के वैविध्यपूर्ण वैभव, अनुपम इतिहास और लोक संस्कृति की परंपराओं पर खूब लिखा, बहुत से जिज्ञासुओं को शोध कराई। इस दिशा में डॉ. एल.डी. जोशी ने जो कुछ किया है ऎसे समर्पित और नैष्ठिक कर्मयोग का दिग्दर्शन बहुत कम लोग ही करा पाते हैं।

अग्निधर्मा व्यक्तित्व के धनी

एकदम सत्यवादी और बेबाक अभिव्यक्ति की वजह से उनके व्यक्तित्व को अग्निधर्मा माना जाता रहा और यही कारण है कि सतही और कम समय में इधर-उधर से सामग्री संग्रहित कर शोध एवं प्रकाशन का मोह रखने वाले लोग उनसे दूर भागते थे। डॉ. जोशी जो भी काम एवं शोध हाथ में लेते, उसका सूक्ष्म अवलोकन, पैनी दृष्टि से अन्वेषण और समग्र सारभूत निष्कर्ष के साथ ही पूर्णता का प्रकटीकरण करते। सतही शोध और थोथी बातों से उन्हें बहुत चिढ़ थी और यही कारण था कि किसी गलत बात या तथ्य के सामने आते ही उनका जो क्रोध उमड़ पड़ता, उसे सहन करना मामूली लोगों में बस में नहीं था। दीर्घकालीन शिक्षकीय अनुभवों की बदौलत सामने वाले के लक्ष्य, उद्देश्य और मन के भावों को पढ़ लेने का उनका मनोविज्ञान इतना जबर्दस्त था कि वह कभी गलत साबित नहीं हुआ।

हर बार विराट ज्ञान कोष का अहसास

डॉ. जोशी के मन में सबसे अधिक तड़प यही थी कि उन्होंने बीते दशकों में वागड़ के बारे में शोध-अध्ययन, प्रकाशन आदि के माध्यम से जो अपार सामग्री संचित की है उसका उपयोग होना चाहिए ताकि आने वाली पीढ़ियों तक इसका लाभ संवहित होता रह सके। डॉ. एल.डी. जोशी का जादुई व्यक्तित्व ही ऎसा था कि जो उनके सम्पर्क में आता, गहरे तक प्रभावित हुए बगैर नहीं रह सकता। हर मुलाकात में वागड़ के बारे में नई से नई जानकारी से साक्षात्। और नए तथ्य भी ऎसे कि हर कोई अचंभित रह जाता उनके ज्ञान, शोध और अनुभवों की त्रिवेणी में गोता लगाकर।

विद्वानों में अग्रणी सम्माननीय

सन् 2010 में 7 फरवरी को उनकी बांसवाड़ा यात्रा के दौरान जानी-मानी विदुषी एवं साहित्य चिन्तक डॉ. निर्मला शर्मा के आवास पर उनसे वागड़ के साहित्य, संस्कृति और लेखन पर लम्बी चर्चा हुई। इसमें उन्होंने खुलकर अपने मन के उद्गार व्यक्त किए। उन दिनों डॉ. निर्मला शर्मा मीरा बाई के समकक्ष रही गवरी बाई पर पुस्तक लिख रही थी। इसकी जानकारी पाकर डॉ. जोशी बेहद अभिभूत हुए और कहा कि अन्तर्मुखी गवरी बाई के बारे में पुस्तक सामने आने पर लोगों को जानकारी होगी और इसका लाभ वागड़ को मिलेगा। इसके साथ ही गवरी बाई के बारे में महत्वपूर्ण जानकारी देश-दुनिया के लोगों तक पहुंचेगी।

इस चर्चा के दौरान उन्होंने विदुषी डॉ. निर्मला शर्मा की खूब तारीफ की और उन्हें असाधारण व्यक्तित्व से सम्पन्न विलक्षण विभूति बताया। डॉ. जोशी ने प्रचार-प्रसार के मोह से ऊपर उठकर स्वाध्याय, गहन चिन्तन और शोध पर जोर दिया और कहा कि वागड़ की संस्कृति के बारे में दुनिया को बताने के लिए यहां के लेखकों, साहित्यकारों और चिन्तकों को फर्ज की भावना से आगे आना होगा।

इसी दौरान उन्होंने बांसवाड़ा के सदियों पुराने लालीवाल मठ के मुख्य द्वार के बाहर स्थापित शिलालेख को मठ की महिमा बताने की दृष्टि से महत्वपूर्ण बताते हुए इसके भावार्थ का प्रकटीकरण किया।

अथाह ज्ञानराशि के समन्दर

डॉ. एलडी जोशी का सान्निध्य मुझे उन दिनों अधिक प्राप्त हुआ, जब मैं डूंगरपुर पदस्थापित था। इस दौरान उनके साथ रहकर रामबोला मठ के महामण्डलेश्वर महन्त श्री केशवदास जी महाराज तथा हरि मन्दिर साबला के महंत एवं बेणेश्वर पीठाधीश्वर देवानंद जी महाराज और कई बुजुर्ग स्वतंत्रता सेनानियों से मुलाकात के मौके कई बार मिले और हर बार नवीन ज्ञान और अनुभव सामने आए। बाद में बांसवाड़ा और उदयपुर में भी उनका सान्निध्य मिला। इस दौरान वागड़ के बारे में खूब जानने का मौका मिला और उन्होंने काफी साहित्य भी दिया। डॉ. जोशी बहुविध ज्ञान के अथाह भण्डार थे लेकिन हमारा दुर्भाग्य ही रहा कि उनकी विद्वत्ता और संग्रहित अथाह ज्ञान राशि का हम लाभ प्राप्त नहीं कर पाए।

डॉ. जोशी के व्यक्तित्व और कर्तृत्व के बारे में वागड़ के लोगों को अभी बहुत कुछ जानने और उनसे प्रेरणा पाकर वागड़ की सेवा के लिए करने की आवश्यकता है।

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