11 भारतीय भाषाओं में मशीनी अनुवाद उपलब्ध;अनुवाद से उतार सकते हैं भाषा ऋण

11 भारतीय भाषाओं में मशीनी अनुवाद उपलब्ध;अनुवाद से उतार सकते हैं भाषा ऋण

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11 भारतीय भाषाओं में मशीनी अनुवाद उपलब्ध;अनुवाद से उतार सकते हैं भाषा ऋण

चंडीगढ़, 22 दिसम्बर

आज कम्प्यूटर के माध्यम से 11 भारतीय भाषाओं में अनुवाद की सुविधा न सिर्फ उपलब्ध है बल्कि धीरे – धीरे मशीनी अनुवाद की गुणवत्ता भी बढ़ती जा रही है। यह जानकारी माइक्रोसॉफ्ट इंडिया के भाषा अनुभाग के निदेशक श्री बालेंदु शर्मा दधीच ने पंजाब विश्वविद्यालय के यूजीसी-मानव संसाधन विकास केंद्र द्वारा आयोजित भाषा शिक्षकों के ऑनलाइन रिफ्रेशर कोर्स के दौरान अनुवाद और सूचना प्रौद्योगिकी विषयक सत्र में कही। इस 2 सप्ताह के कोर्स में देश के 10 राज्यों और पांच अलग – अलग भाषाओं के शिक्षक शामिल हो रहे हैं।

आज कोर्स के तीसरे दिन आयोजित एक सत्र में श्री बालेंदु शर्मा ने भारतीय भाषाओं की कम्प्यूटिंग पर विस्तार से चर्चा करते हुए बताया कि कृत्रिम मेधा (Artificial Intelligence) का उपयोग अब भारतीय भाषाओं में भी बढ़ – चढ़ कर किया जा रहा है और कम्प्यूटर हो या मोबाइल आज सब जगह भाषा तकनीक दैनिक जीवन का हिस्सा बनती जा रही है। उन्होंने माइक्रोसॉफ्ट वर्ड और पावर प्वाइंट प्रेजेंटेशन में उपलब्ध अनुवाद की सुविधा के प्रदर्शन के साथ – साथ अनेक ऐसे उदाहरण प्रतिभागियों के साथ साझे किए जिनसे मशीनी अनुवाद में भी निरंतर सुधार होने की बात सामने आई। उन्होंने कहा कि यह सही है कि अनुवाद में अनुवादक की भूमिका कभी खत्म नहीं हो सकती लेकिन मशीनी अनुवाद भी इस प्रक्रिया में एक सहायक की भूमिका निभा सकता है।

इससे पहले एक अन्य सत्र में अनुवाद की संस्कृति पर अपने विचार रखते हुए साहित्य अकादमी पुरस्कृत अनुवादक और पंजाब विश्वविद्यालय के पूर्व प्रोफेसर राणा नय्यर ने कहा कि जिस तरह पितृ ऋण, मातृ ऋण और गुरु ऋण होते हैं, उसी तरह से एक भाषा ऋण भी होता है। उन्होंने कहा कि भाषा ऋण को उतारने का एक बड़ा जरिया अपनी भाषा में उपलब्ध साहित्य को दूसरी भाषा में अनुवाद करने का हो सकता है क्योंकि इस तरह हम अपनी संस्कृति और भाषा प्रतीकों को अन्य लोगों तक पहुंचा कर अपनी भाषा की सेवा कर सकते हैं।

आज के तीसरे सत्र में बुल्गारिया के सोफिया विश्वविद्यालय के प्रो. आनंदवर्धन शर्मा ने बुल्गारियन और हिंदी भाषा में अनुवाद की परंपरा की जानकारी देते हुए कहा कि अनुवाद केवल भाषिक प्रक्रिया मात्र नहीं है बल्कि एक सांस्कृतिक सेतु का कार्य भी करता है और इसके माध्यम से दो संस्कृतियां आपस में जुड़ पाती हैं।

पुनश्चर्या पाठ्यक्रम( रिफ्रेशर कोर्स) के कोर्स समन्वयक व हिंदी विभाग के एसोसिएट प्रोफेसर डॉ. गुरमीत सिंह ने बताया कि “अनुवाद की संस्कृति व संस्कृति का अनुवाद” के केंद्रीय विषय पर हो रहे इस कोर्स में देश – विदेश से विभिन्न भाषाओं और क्षेत्रों के करीब 30 अधिकारी विद्वानों को निमंत्रित किया गया है जिनमें बुल्गारिया और पुर्तगाल से लेकर सुदूर दक्षिण और उत्तर – पूर्व भारत के विद्वान शामिल हैं। उन्होंने कहा कि आज के समय में अनुवाद का क्षेत्र बहुत महत्त्वपूर्ण हो गया है और नई शिक्षा नीति में भी इस पर खास जोर दिया गया है।

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